दिन ब दिन दुनिया तरक्की की और बढ़ रही है और बुलंदियों को छू रही है और नए-नए तंत्रज्ञान का आविष्कार होते जा रहा है। ऐसे ही एक नए आविष्कार को स्वीडन के साइंस दोनों ने अंजाम दिया है और वह अविष्कार लिविंग कंप्यूटर है। यह लिविंग कंप्यूटर मानव मस्तिष्क की तरह काम करने की काबिलियत रखता है। इस कंप्यूटर का आविष्कार स्वीडन के साइंस दोनों ने लिविंग कंप्यूटर के सपने को हकीकत में बदल दिया है और उन्होंने दुनिया का सबसे पहले लिविंग कंप्यूटर बना लिया है जो इंसान के दिमाग के टुकड़ों से बना है।
ऑर्गेनॉइड क्या हैं?
लिविंग कंप्यूटर के बारे में माजिद जानकारी हासिल करने से पहले हम यह जानेंगे कि ऑर्गेनॉइड क्या होता है और लिविंग कंप्यूटर में इसका उपयोग कैसे होता है। ऑर्गेनाइड लैब में बनाए गए या पाले गए ब्रेन सेल्स की छोटी टुकड़ों को कहा जाता है। यह बिल्कुल आम कंप्यूटर की चिप की तरह होते हैं और न्यूरॉन्स के माध्यम से सिग्नल भेज दे और लेते हैं।
लिविंग कंप्यूटर की विशेषताएं
अरकानॉइड की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह बहुत कम पावर का इस्तेमाल करते है और डिजिटल प्रोसेसर के मुकाबले में यह लिविंग न्यूरॉन्स लाखों गुना कम बिजली का इस्तेमाल करते हैं। अगर हम उदाहरण के लिए देखेंगे तो दुनिया के सबसे पावरफुल कंप्यूटर 21 मेगावाट की बिजली का इस्तेमाल करता है जबकि इंसान का मस्तिष्क इतनी ही स्पीड और ज्यादा मेमोरी वाला होते हुए भी सिर्फ 10 से 20 वाट्स बिजली का इस्तेमाल करता है।
इंसान के मस्तिष्क में एक केमिकल सीक्रेट होता है जिसे हम डोपमाइन कहते हैं। यह डोपामिन एक केमिकल है जो ब्रेन को रिवार्ड देता है। और लिविंग कंप्यूटर को डोपामिन के माध्यम से ट्रेन किया जाता है।
लिविंग कंप्यूटर की संरचना
फाइनल स्पार्क नाम की एक प्रतिष्ठित कंपनी जो बायोलॉजिकल न्यूरल नेटवर्क्स का इस्तेमाल करके नए-नए अविष्कार करती है, इस कंपनी ने आज लिविंग कंप्यूटर का खोज करने का प्रयास करके उसे सफल बनाया है।
लिविंग कंप्यूटर को बनाया हुआ तरीका
*लिविंग कंप्यूटर को बनाने के लिए वैज्ञानिको ने एक स्टेम सेल से ऑर्गेनॉइड बनाए और इन्हें तकरीबन एक महीने तक कल्चर में रखा ताकि वे न्यूरॉन जैसे बन जाए।
* इस तरह बनाए गए मिनी ब्रेंस को मॉनिटर करनेलिए इनके चारों ओर 8 इलेक्ट्रोड लगाए गए और इलेक्ट्रोड से करंट भेज कर न्यूरॉन्स को कंट्रोल करते थे।
लिविंग कंप्यूटर की लाइफ साइकिल
लिविंग कंप्यूटर के सेल्स इस तरह काम करते हैं जैसे की जिंदा मानव के मस्तिष्क के सेल्स काम करते हैं। इसमें सेल्स 100 दिनों के अंदर पैदा होते रहते हैं और साथ ही खत्म भी होते रहते हैं। इंसान के मस्तिष्क के न्यूरॉन्स की आयु 80 साल होती है। इंसान के जन्म के समय जितने न्यूरॉन्स होते हैं उतने ही न्यूरॉन्स उसके मरने के समय होते हैं।